Hope of Ray Slogans
कविता
अंधकार से प्रकाश की ओर
मुर्ख के दिहो ज्ञान, धरीहो टोटा लिहो प्राण
भैंस के आगे बिन बजाय, भैंसी तो समझ ना पाए
ज्योही चरवाहा लाठी उठाय, भैंसिया जाये कुम्भ नहाय
कहे संत रविदास, मन चंगा तो, कठोती में गंगा
पाखंडी का लेप लगाय, काली भैंसी सफेद ना होए
अधजल गगरी छलकत जाय, गंगा नहाय अबोध बेचारा
बुद्धू तो समझ ना पाय, कैसे भर गया पाप घड़ा का
कहे कबीर वाह रे पापी,
आप ही करता पाप, आपही मानता माफ़ी।
माला फेरत जुग भया, फिरा ना मन का फेर,
पहन लियो माला चार, अब ओर हो गया फेरा
कर का मनका डार दे, फिर हिमालय में करें डेरा
करे मोह-माया से आँखे चार राग-द्वेष से मुक्ति ना पाये
जो चाहे मुक्ती का मार्ग, बुध, धम्म और संघ में जाए
बुध का अष्टांग मार्ग, पाखंडियो का रास न आवे ।
जो करे नियमित अभ्यास, शुद्ध होके बुद्ध बन जाए ।
बुद्ध कहते हैं
अन्त हुआ अंधेरा अधर्म का, बिती काली रात
हुआ सबेरा धर्म का, सबक्का मंगला हो…
आपो दीपो भाव:
किसी को न खोजना, निर्जन राह से अंतिम लक्ष्य तक पहुंचने में अकेले ही चलना पड़ता हैं।
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